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International Women’s Day

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WHY WOMEN’s DAY???

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बस…’ये’, कहानी है :

बहुत पुरानी एक कहानी मेरी नानी कहतीं थीं,

किसी समय में,किसी जगह ‘कुछ चोरों’ की इक बस्ती थी.
मुखिया था जो, सब चोरों का ‘राष्ट्रपिता’ कहलाता था,
उसका ही परिवार अकेला, शासन-तंत्र चलता था.
बाद पिता के बेटी-बेटे,उस गद्दी के मालिक थे,चलता था ‘सब -कुछ ‘ मिल-जुलकर, वे सब बेहद ‘क़ाबिल’ थे.
पुत्र नहीं तो ‘पुत्र-वधू’ भी गद्दी की अधिकारी थी,
जामाता, दौहित्र; पौत्रों.. की भी महिमा न्यारी थी.
लूट-पाट का सारा वैभवबाहर जमा करते थे ,
‘काले-धन’ से सैर-सपाटा,बाहर करने जाते थे !
बेचारे,बस्ती-वाले! सब सहमे-सहमे रहते थे,
हक़‘ छीना जाता था उनका ,वह चुपचाप झेलते थे.
धीरे-धीरे‘राज-धर्म”…भोली-जनता में उतर गया,
चोरी ही है “राष्ट्र-निति जन-मानस में ये बैठ गया.

बजी दुन्दुभी चोरी की, भय(?) कोई नहीं सताया था !

सभी निडर हो,चोरी करते ! छीना-झपटा,खाया था,.
साठ-साल ! सब चला यथावत्…सब चोरी में डूबे थे,
कौन चोर है?”,”कैसी चोरी?”यह ‘विवेक‘ भी भूले थे.
क्रमशः…यह राजा-गण,अपने रास-रंग में,डूब गए,
चौकस रहने की,आवश्यक ‘कूट-निति‘ ही भूल गए.
गढ़ के बाहर ‘लोग दूसरे’, इसअवसर को,ताड़ गए,
मौके से, वह इस बस्ती में ,अपने झण्डे गाड़ गए.
जन -जन में था नया जोश,वह नया सवेरा लाये थे,
नया प्रबंधन,नयी नीतियाँ,’कुछ अच्छे दिन’ आये थे.
चोर पुराने बड़े सयाने,राजनीति के ‘दिग्गज’ थे,
दंगों की है ‘कूटनीति’ क्या? इसको खूब सनाझाते थे ,
कभी यहाँ तो कभी वहां ,कुछ धंधे करते रहते थे,
किसे लड़ा कर ‘नाम कमायें’, फन्दे कसते रहते थे .
बँदूकें उनकी होती थीं ,कन्धा होता, सेना का ! ,
आगजनी और लूट-पाट में चेहरा होता ‘जनता’ का !
ना समझे जो इन बातों को…ये उसकी नादानी है,
खोजो न ‘पहचान’ किसी की,ये तो सिर्फ़ ‘कहानी’ है.